Dr Vinod Raina
Secondary Diseases in HIV/Aids
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) संक्रमण की एक प्रगति होती है, जो धीरे-धीरे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। यदि एचआईवी का इलाज न किया जाए, तो यह एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) में बदल सकता है। एचआईवी से एड्स में बदलने की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:
प्रारंभिक संक्रमण (एक्यूट एचआईवी संक्रमण):
एचआईवी के संपर्क में आने के कुछ हफ्तों के भीतर, व्यक्ति को फ्लू जैसे लक्षण हो सकते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द, थकान, और गले में खराश। यह चरण 2-4 सप्ताह तक चल सकता है।
इस चरण में वायरस तेजी से बढ़ता है और रक्त में एचआईवी की मात्रा (वायरल लोड) बहुत अधिक होती है।
अस्पष्ट संक्रमण (क्लिनिकल लेटेंसी):
इस चरण को "क्रॉनिक एचआईवी" भी कहा जाता है। यह चरण कई वर्षों तक (औसतन 10 साल तक) चल सकता है, जिसमें कोई या बहुत कम लक्षण होते हैं।
एचआईवी धीरे-धीरे प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता रहता है। यदि एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी (ART) शुरू की जाती है, तो यह चरण लंबे समय तक रह सकता है और व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
एड्स (AIDS):
एड्स वह स्थिति है, जब एचआईवी संक्रमण के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी कमजोर हो जाती है कि वह सामान्य संक्रमणों और बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं रह जाती।
एड्स की पहचान आमतौर पर तब होती है जब व्यक्ति की CD4 T-सेल गिनती 200 कोशिकाएं/मिलीमीटर से कम हो जाती है या उसे एचआईवी से संबंधित विशिष्ट बीमारियां हो जाती हैं, जैसे कि कापोसी सारकोमा, तपेदिक, न्यूमोनिया, आदि।
Secondary Diseases
एचआईवी/एड्स के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे व्यक्ति विभिन्न प्रकार की सेकेंडरी (द्वितीयक) बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख बीमारियां और संक्रमण निम्नलिखित हैं:
तपेदिक (टीबी): एचआईवी से संक्रमित व्यक्तियों में तपेदिक होने की संभावना अधिक होती है। यह एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो फेफड़ों को प्रभावित करता है।
न्यूमोनिया: यह फेफड़ों का एक संक्रमण है, जो एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में सामान्यतः पाया जाता है।
कैंसर: एचआईवी/एड्स के मरीजों में कुछ प्रकार के कैंसर जैसे कापोसी सारकोमा और नॉन-हॉजकिन्स लिम्फोमा अधिक होते हैं।
क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस: यह एक परजीवी संक्रमण है जो आंतों को प्रभावित करता है और डायरिया का कारण बनता है।
टोक्सोप्लाजमोसिस: यह एक परजीवी संक्रमण है जो मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।
कैंडिडिआसिस: यह यीस्ट संक्रमण है जो मुख, गला, या योनि को प्रभावित करता है।
क्रिप्टोकोकस नियोफॉर्मन्स: यह फंगल संक्रमण है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित कर सकता है।
साइटोमेगालोवायरस (CMV) संक्रमण: यह वायरस आंखों, फेफड़ों, पाचन तंत्र और अन्य अंगों को प्रभावित कर सकता है।
हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस (HSV) संक्रमण: यह त्वचा, मुंह और जननांगों पर छाले और घाव कर सकता है।
मायकोबैक्टीरियम एवियम कॉम्प्लेक्स (MAC) संक्रमण: यह बैक्टीरिया का एक समूह है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में संक्रमण कर सकता है।
एचआईवी से एड्स के संक्रमण की प्रक्रिया को रोकने के उपाय:
एंटीरेट्रोवायरल थैरेपी (ART): यह एचआईवी का प्रमुख उपचार है, जो वायरस को दबाने में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखता है। नियमित ART लेने से एचआईवी संक्रमण को एड्स में बदलने से रोका जा सकता है।
स्वास्थ्य निगरानी: नियमित चिकित्सा जांच और परीक्षण से एचआईवी की प्रगति को मॉनिटर करना और समय पर हस्तक्षेप करना संभव होता है।
स्वस्थ जीवनशैली: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, और तनाव प्रबंधन से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखा जा सकता है।
संक्रमण से बचाव: अन्य संक्रमणों से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए, जैसे कि स्वच्छता का ध्यान रखना और टीकाकरण।
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डॉ. विनोद रैना, एचआईवी स्पेशलिस्ट
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